छत्तीसगढ़ में खनन माफिया की दहशत! सक्ती जिले के छितापंडरिया गांव में बारूद की चपेट में ज़िंदगी, सरपंच की मिलीभगत से मौत का खेल जारी!
संदेश भारत, रायपुर. छत्तीसगढ़ का सक्ती जिला इन दिनों एक भयावह संकट से जूझ रहा है। यहां के छितापंडरिया गांव में हालात इतने खतरनाक हो चुके हैं कि ग्रामीण अपनी जान हथेली पर रखकर जीने को मजबूर हैं। वजह है—बेलगाम खनन माफिया, जो गांव के बीचोंबीच बारूद बिछाकर खुलेआम ब्लास्टिंग कर रहे हैं। और यह सब हो रहा है प्रशासन और कानून की आंखों में धूल झोंककर।
तालाब बना बारूद का मैदान गांव के जिस तालाब से सैकड़ों लोगों की रोज़मर्रा की ज़रूरतें पूरी होती थीं, आज वही तालाब मौत का कुंआ बन चुका है। चारों ओर बारूद और तार बिछे हुए हैं। कभी भी एक धमाका पूरे गांव को दहशत के सागर में डुबो सकता है। यह केवल पर्यावरण का ही नहीं, बल्कि इंसानी जिंदगियों का भी सीधा मखौल है।
सरपंच पर गंभीर आरोप, माफिया से साठगांठ? गांववालों का आरोप है कि यह सब गांव के सरपंच की मिलीभगत से हो रहा है। सरपंच ने खनन माफिया को तालाब के चारों ओर अवैध रूप से खुदाई करने की छूट दे रखी है। कहा जा रहा है कि डोलोमाइट पत्थर के पीछे करोड़ों का खेल चल रहा है और यह खेल गांववालों की जान की कीमत पर खेला जा रहा है।
प्रशासन को भनक तक नहीं? सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि इस खतरनाक गतिविधि की जानकारी स्थानीय प्रशासन या खनिज विभाग को नहीं दी गई। आखिर इतने बड़े स्तर पर बारूद की सप्लाई कैसे हुई? कौन है वो "सोनी", जिसका नाम बारूद सप्लाई में सामने आया है? क्या वह किसी रसूखदार का मोहरा है?
कलेक्टर की चेतावनी, लेकिन क्या होगा असर? मामला उजागर होने के बाद सक्ती कलेक्टर ने सख्त कार्रवाई की बात कही है। उनका कहना है कि जांच टीम भेजी गई है और दोषियों को बख्शा नहीं जाएगा। लेकिन सवाल यह है कि जब तक जांच होगी, तब तक क्या कोई बड़ा हादसा हो चुका होगा?
राजनीति और खनन माफिया का गठजोड़? छत्तीसगढ़ में खनन माफिया के इस दुस्साहस के पीछे कोई न कोई बड़ा राजनीतिक संरक्षण तो ज़रूर होगा। वरना गांव के बीचोंबीच ब्लास्टिंग और सैकड़ों ट्रकों में पत्थर भरकर भेजना किसी भी कीमत पर संभव नहीं लगता। ग्रामीणों ने बताया कि पिछले हफ्ते ही भारी ब्लास्टिंग के बाद कई गाड़ियां पत्थर लेकर रवाना हुई थीं, लेकिन प्रशासन बेखबर बना रहा।
अब बस एक सवाल — कब जागेगा सिस्टम? छितापंडरिया अब सिर्फ एक गांव नहीं रहा, यह माफिया राज की एक भयावह मिसाल बन चुका है। अगर अब भी प्रशासन, सरकार और कानून नहीं जागे, तो कल कोई और गांव इसी आग में झुलसेगा। ज़रूरत है अब एक ऐसी कार्रवाई की जो मिसाल बने — सरपंच से लेकर सप्लायर तक, माफिया से लेकर संरक्षण देने वाले तक, सबको सलाखों के पीछे डालने की। क्योंकि ये सिर्फ खनन नहीं, इंसानियत का कत्ल है।
छत्तीसगढ़ की मिट्टी अब जवाब मांग रही है — आख़िर कब रुकेगा ये बारूद का खेल?