हास्य की दुनिया को ग़मगीन कर गया एक मुस्कुराता चेहरा – पद्मश्री डॉ. सुरेंद्र दुबे का निधन
संदेश भारत, रायपुर। छत्तीसगढ़ ही नहीं, पूरे देश को अपनी हास्य कविताओं से हँसी का तोहफा देने वाले पद्मश्री डॉ. सुरेंद्र दुबे अब हमारे बीच नहीं रहे। आज सुबह रायपुर के एडवांस कार्डियक इंस्टीट्यूट में दिल का दौरा पड़ने से उनका निधन हो गया। वे कुछ समय से बीमार चल रहे थे। जैसे ही यह दुखद समाचार सामने आया, पूरे छत्तीसगढ़ और साहित्य जगत में शोक की लहर दौड़ गई।
डॉ. सुरेंद्र दुबे न सिर्फ एक मंझे हुए कवि थे, बल्कि वे आयुर्वेदिक चिकित्सा के क्षेत्र में भी विशेष योगदान देने वाले एक कुशल चिकित्सक थे। लेकिन देश-विदेश में उन्हें असली पहचान उनके तीखे व्यंग्य, मृदु मुस्कान और गुदगुदाते अंदाज़ के लिए मिली। उन्होंने कवि सम्मेलनों में अपनी अलग छाप छोड़ी और टेलीविजन पर भी हास्य का एक नया आयाम रचा।
कोरोना काल में भी हँसी बाँटते रहे जब पूरा देश डर, अवसाद और अनिश्चितता के साए में था, तब भी सुरेंद्र दुबे अपनी कलम से लोगों के चेहरों पर मुस्कान लाने में लगे रहे।
उन्होंने लिखा: "हम हंसते हैं, लोगों को हंसाते हैं, इम्यूनिटी बढ़ाते हैं, घिसे-पिटे चुटकलों में भी हंसो, कोरोना के आंकड़ों में मत फंसो..."
उनकी ये पंक्तियाँ सिर्फ कविता नहीं थीं, वो जनता को हौसला देने वाला एक संदेश था – कि हँसी भी एक दवा है।
सम्मान और सफर 8 जनवरी 1953 को बेमेतरा में जन्मे डॉ. दुबे ने पांच किताबें लिखीं, कई अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत का प्रतिनिधित्व किया। उन्हें 2010 में भारत सरकार ने पद्मश्री से सम्मानित किया। अमेरिका में भी उनकी कविताओं की गूंज थी – शिकागो में उन्हें "छत्तीसगढ़ रत्न" सम्मान मिला और वे एक दर्जन से अधिक जगहों पर काव्य पाठ कर चुके थे।
हँसी थम गई, पर यादें अमर हैं
डॉ. सुरेंद्र दुबे अब हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनका हास्य, उनकी पंक्तियाँ और उनके जीवन का संदेश हमेशा जिंदा रहेगा। वे चले गए, पर उन्होंने हमें वो हँसी सौंप दी है जो मुश्किल वक्त में भी जीने की उम्मीद देती है।
श्रद्धांजलि सुरेंद्र दुबे – आप हँसी छोड़ गए हैं, और हम रो रहे हैं।