संदेश भारत, रायपुर।राजधानी रायपुर के दिल में खड़ा स्काईवॉक अब “विकास” नहीं, व्यवस्था की विफलता और भ्रष्टाचार की बदनुमा छाया बन गया है। शास्त्री चौक से जयस्तंभ चौक और अंबेडकर अस्पताल तक फैला यह स्काईवॉक पिछले 8 सालों से अधूरा, बेकार और बेहिसाब खर्च का शिकार है। अब सरकार फिर से इसे पूरा करने का दावा कर रही है—लेकिन जनता का सवाल साफ है: क्या यह काम पूरा होगा या फिर एक बार फिर घोटालों की गंदगी में डूब जाएगा?
अब तक स्काईवॉक पर 50 करोड़ रुपये खर्च हो चुके हैं—और आज भी यह इस्तेमाल के काबिल नहीं है। जनता की गाढ़ी कमाई हवा में उड़ चुकी है। अब सरकार कहती है कि इसे पूरा करने में और 37.75 करोड़ लगेंगे। क्या यही है स्मार्ट सिटी का सपना? या फिर यह "स्मार्ट घोटाले" का सुनियोजित ताना-बाना?
2017 में बीजेपी सरकार ने "स्मार्ट सिटी रायपुर" के नाम पर इस स्काईवॉक की नींव रखी थी। बड़े-बड़े पोस्टर लगे, वादों की बारिश हुई। लेकिन हकीकत यह है कि 2018 में सरकार बदली, और स्काईवॉक का काम ठप हो गया। कांग्रेस सरकार भी 5 साल तक इस ढांचे को ऐसे ही जंग खाते हुए देखती रही।
अब जब विधानसभा चुनाव नज़दीक हैं, तो फिर से पुराना ढांचा चमकाया जा रहा है, कैमरे बुलाए जा रहे हैं, और एजेंसी को ठेका दिया जा रहा है। यानी राजनीति फिर से ज़मीन पर उतर रही है—लेकिन जनता के सवालों का जवाब अब भी गायब है।
क्या उन अफसरों और नेताओं पर कार्रवाई हुई जिन्होंने इसे 8 साल तक लावारिस छोड़ दिया?
क्या अब जो नई एजेंसी को ठेका दिया गया है, उसकी जवाबदेही तय की गई है?
अगर 50 करोड़ में 60% ढांचा ही बन पाया, तो क्या बाकी 40% पर 37 करोड़ खर्च करना न्यायसंगत है या खुला लूटतंत्र?
लोगों की ज़रूरतें सीढ़ी नहीं मांगतीं, ईमानदार नीयत और मजबूत काम मांगती हैं। लेकिन 8 साल में यह साबित हो गया कि ये स्काईवॉक महज़ एक चुनावी स्टंट था, और अब फिर से इसे ज़िंदा करने की कोशिश में एक और बड़ा खेल शुरू हो रहा है।
जब तक जनता सवाल नहीं पूछेगी, ऐसे स्काईवॉक राजनीति के शोपीस बनते रहेंगे।
जब तक भ्रष्टाचार पर कार्रवाई नहीं होगी, करोड़ों की योजनाएं सिर्फ पोस्टर में पूरी होंगी।
अब सवाल रायपुर से नहीं, राजधानी से है—कब तक जनता को धोखा मिलेगा? कब तक योजनाएं अफसर-नेता गठजोड़ की भेंट चढ़ती रहेंगी?
अब फैसला आपको करना है—स्काईवॉक चाहिए या सिस्टम की सर्जरी?
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