संदेश भारत, बिलासपुर। छत्तीसगढ़ के इकलौते राज्य मानसिक चिकित्सालय, सेंदरी की बदहाली ने अब न्यायालय की दहलीज़ तक दस्तक दे दी है। निरीक्षण में सामने आई शर्मनाक सच्चाई ने न सिर्फ सिस्टम की पोल खोल दी है, बल्कि मरीजों की हालत पर सवालिया निशान खड़े कर दिए हैं।
जहां एक ओर अस्पताल प्रशासन अखबारों में छपी खबरों को "निराधार" बता रहा है, वहीं कोर्ट कमिश्नर की रिपोर्ट ने सारी सच्चाई उजागर कर दी है। डॉक्टर और स्टाफ सिर्फ एक से डेढ़ घंटे तक अस्पताल में रहते हैं, जबकि तय समय सुबह 8 से दोपहर 2 बजे तक है! मरीजों को न साफ पानी मिल रहा, न साफ-सफाई, और न ही पर्याप्त देखभाल। वाटर कूलर खराब पड़े हैं, हाइजीन की हालत बेहद चिंताजनक है। ये हालात हैं प्रदेश के "एकमात्र" मानसिक अस्पताल के!
मुख्य सचिव और स्वास्थ्य सचिव का निरीक्षण महज़ दिखावा?
जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान सामने आया कि अप्रैल में शीर्ष अधिकारियों ने निरीक्षण जरूर किया, लेकिन हालात जस के तस हैं। कोर्ट कमिश्नर ने साफ कहा कि अस्पताल का सेटअप अधूरा है और डॉक्टरों की संख्या जरूरत से काफी कम है। ऐसे में इलाज के नाम पर सिर्फ खानापूर्ति हो रही है।
कोर्ट का फटकार, स्वास्थ्य सचिव को देना होगा जवाब
छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश रमेश कुमार सिन्हा ने व्यवस्थाओं में सुधार न होने पर कड़ी नाराज़गी जताई है और स्वास्थ्य विभाग के सचिव से सीधे जवाब मांगा है। अब अगली सुनवाई 16 जुलाई को होगी, जिसमें जवाब देना ही होगा कि मानसिक स्वास्थ्य के नाम पर ये लापरवाही कब तक चलेगी?
सरकार जवाब दे – मरीज मर रहे हैं, सिस्टम सो रहा है!
क्या मानसिक रोगियों की कोई सुनवाई नहीं? क्या सिस्टम को सिर्फ रिपोर्ट बनाने और फोटो खिंचवाने की फुर्सत है? जब डॉक्टर ही अपनी ड्यूटी पूरी नहीं कर रहे तो इलाज किसका हो रहा है?
अब सवाल यह है — क्या सरकार जागेगी या फिर मानसिक रोगियों की यह चीखें सेंदरी की दीवारों में ही गूंजती रहेंगी?
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