ग्राउंड रिपोर्ट - भरत चंद्रा
संदेश भारत रायपुर : रायपुर नगर निगम की कार्रवाई एक बार फिर सवालों के घेरे में है। मठपुरैना स्थित काठाडीह बी.एस.यू.पी. कॉलोनी में 10 वर्षों से रह रहे और मेहनत से व्यवसाय कर रहे लोगों की दुकानों को अचानक ध्वस्त कर दिया गया, वो भी बिना किसी नोटिस या सूचना के।
घटना का विवरण
काठाडीह स्थित कॉलोनी में दर्जनों परिवार पिछले कई वर्षों से छोटे-छोटे व्यवसाय चला रहे हैं — जैसे डेयरी (डेली नीड्स), नाश्ता सेंटर, किराना, फास्टफूड और कोल्ड्रिंक्स की दुकानें। इनमें से कई व्यवसाय 8-10 साल से चल रहे थे और उनका मुख्य और एकमात्र जीविका का साधन थे। लेकिन 1 जुलाई की सुबह नगर निगम की टीम ने भारी बल के साथ आकर उन सभी दुकानों को बिना किसी चेतावनी, नोटिस या सुनवाई के अचानक तोड़ दिया। कई दुकानदारों के पास अपना सामान तक निकालने का समय नहीं था।
दस्तावेज़ी प्रमाण भी नजरअंदाज
इस मामले में सबसे चौंकाने वाली बात यह रही कि कुछ दुकानदारों ने वैध रूप से नगर निगम को आवेदन भी सौंपा था, जिसमें वे बी.एस.यू.पी. कॉलोनी में निर्माणाधीन व्यवसायिक भवन में दुकान आवंटित करने की मांग कर रहे थे।
दिनांक 17 जनवरी 2024 को भगत महानंद ने निगम को पत्र देकर मांग की थी कि उन्हें वैध व्यवसायिक भवन में दुकान दी जाए, ताकि उनका डेयरी व्यापार नियमित रूप से चल सके।
इसके अलावा, 23 अगस्त 2024 को फिर से उन्होंने ज़ोन आयुक्त को आवेदन देकर आग्रह किया कि निर्माणाधीन दुकानों में से एक दुकान उन्हें जीविका के लिए दी जाए।
इन दोनों पत्रों पर नगर निगम की मोहर और प्राप्ति दिनांक दर्ज है। यानी नगर निगम को न सिर्फ दुकानदारों के व्यवसाय की जानकारी थी, बल्कि आवेदन भी उनके पास लंबित थे।
स्थानीय रहवासी और पीड़ित दुकानदारों का कहना है:
"हम 10 साल से यहीं रह रहे हैं, बच्चों की पढ़ाई से लेकर परिवार का पेट इसी व्यवसाय से चल रहा था। निगम ने कभी आपत्ति नहीं की, तो अब अचानक ये अत्याचार क्यों?"
प्रशासन की चुप्पी, सवालों के घेरे में कार्रवाई
नगर निगम की ओर से इसे अतिक्रमण हटाने की कार्रवाई बताया गया है, लेकिन बिना नोटिस, बिना सुनवाई, और वैध आवेदन के बावजूद की गई यह कार्रवाई सीधे-सीधे "प्रशासनिक तानाशाही" की मिसाल बन गई है।
जनता में भारी नाराज़गी है और उन्होंने मांग की है कि:
हमें हमारे दुकानों का और जो सामान नुकसान हुए हैं उनका उचित मुआवजा दिया जाए
यह केवल अतिक्रमण नहीं, यह आजीविका पर सीधा हमला है!
नगर निगम को यह समझना होगा कि जो लोग वर्षों से मेहनत करके अपने परिवार पाल रहे हैं, उनके साथ ऐसा अन्याय करना लोकतंत्र के सिद्धांतों के खिलाफ है। यह केवल दुकानें नहीं टूटीं — कई परिवारों की उम्मीदें, रोज़गार और आत्मसम्मान भी मलबे में दब गया।
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