संदेश भारत, सरगुजा (लखनपुर)। छत्तीसगढ़ के सरगुजा ज़िले के लखनपुर जनपद अंतर्गत ग्राम पंचायत अम्लभीठी में महिला एवं बाल विकास विभाग की घोर लापरवाही उजागर हुई है। यहां एक वर्ष से भी अधिक समय से आंगनबाड़ी केंद्र सरकारी भवन के अभाव में एक निजी घर के छोटे से कमरे में संचालित किया जा रहा है। इस गंभीर स्थिति ने सरकार की ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ और ‘पोषण अभियान’ जैसी योजनाओं की सच्चाई सामने रख दी है।
सरकार की योजना, ज़मीनी सच्चाई से कोसों दूर
सरकार हर गांव में बच्चों के पोषण, शिक्षा और स्वास्थ्य के लिए आंगनबाड़ी केंद्रों की स्थापना के दावे करती है। लेकिन अम्लभीठी की स्थिति इन दावों को झुठलाती है। केंद्र के लिए कोई स्थायी भवन नहीं है। एक संकीर्ण कमरे में छोटे बच्चों को बैठाया जाता है, जहां न तो खेलने की जगह है, न ही पर्याप्त रोशनी और वेंटिलेशन। बरसात में कमरे की हालत और बदतर हो जाती है।
न पोषण, न शिक्षा – सिर्फ खानापूर्ति
स्थानीय ग्रामीणों ने बताया कि आंगनबाड़ी में न तो समय पर पोषण आहार आता है, न बच्चों को खेल सामग्री या स्वास्थ्य सुविधाएं मिलती हैं। कई बार गर्मी और उमस से बच्चे बीमार पड़ते हैं। बच्चों की शुरुआती शिक्षा जो इस केंद्र में दी जानी चाहिए, वह सिर्फ रजिस्टरों तक सीमित रह गई है।
डबल इंजन सरकार के दावों की खुली पोल
प्रदेश में भाजपा की डबल इंजन सरकार है – केंद्र और राज्य में एक ही पार्टी। बावजूद इसके महिला एवं बाल विकास मंत्री, स्थानीय विधायक और जिला प्रशासन की ओर से इस ओर कोई संज्ञान नहीं लिया गया।
आश्चर्य की बात यह है कि जनपद पंचायत लखनपुर के सीईओ को इस विषय में पूर्व से जानकारी है। ग्राम सरपंच के अनुसार, “पिछले साल केंद्र जर्जर हो गया था। हमने पंचायत और जनपद स्तर पर जानकारी दी, लेकिन कहा गया कि फंड आएगा तब बनेगा।”
सिर्फ अम्लभीठी नहीं – पूरे लखनपुर जनपद में बदहाली
यह सिर्फ एक गांव की समस्या नहीं है। लखनपुर जनपद के दर्जनों ग्राम पंचायतों में आंगनबाड़ी केंद्र या तो नहीं हैं या फिर 80% से अधिक केंद्र जर्जर अवस्था में हैं। बावजूद इसके शासन-प्रशासन और मुख्यमंत्री कार्यालय की ओर से कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया।
सवाल उठते हैं:
क्या बच्चों का भविष्य सिर्फ कागज़ी फाइलों में सिमट कर रह जाएगा?
क्यों नहीं स्थानीय जनप्रतिनिधि, मंत्री और प्रशासन इस गंभीर मुद्दे पर संज्ञान ले रहे हैं?
क्या पोषण और शिक्षा सिर्फ चुनावी घोषणाएं हैं?
ग्रामीणों की मांगें:
स्थायी और पक्के भवन का निर्माण तत्काल किया जाए।
बच्चों को समय पर पोषण आहार, खेल सामग्री और प्राथमिक स्वास्थ्य सेवाएं मुहैया कराई जाएं।
इस लापरवाही के लिए जिम्मेदार अधिकारियों पर तत्काल कार्रवाई की जाए।
पूरे लखनपुर जनपद की आंगनबाड़ियों की समीक्षा कर जर्जर भवनों की मरम्मत या पुनर्निर्माण की योजना बनाई जाए।
बच्चों के भविष्य से खिलवाड़ बर्दाश्त नहीं
अगर शासन-प्रशासन अब भी नहीं जागा, तो यह न सिर्फ बच्चों के भविष्य के साथ अन्याय होगा, बल्कि संविधान में दिए गए बच्चों के मूल अधिकारों का सीधा उल्लंघन भी होगा।
समाधान की राह क्या हो सकती है?
पंचायत और जनपद स्तर पर विशेष समीक्षा बैठक आयोजित की जाए।
जिला कलेक्टर और महिला एवं बाल विकास विभाग के अधिकारी स्वयं मौके का निरीक्षण करें।
CSR (कॉरपोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व) फंड या राज्य निधि से प्राथमिकता के आधार पर भवन निर्माण कराया जाए।
ग्रामीणों को भी निर्माण कार्यों की निगरानी में जोड़ा जाए, ताकि गुणवत्ता बनी रहे।
अम्लभीठी का यह मामला छत्तीसगढ़ के ग्रामीण क्षेत्रों में बुनियादी ढांचे की गंभीर कमी और प्रशासनिक उदासीनता का प्रतीक है। अब वक्त आ गया है कि सरकार और प्रशासन कागज़ी घोषणाओं से बाहर निकल कर जमीनी स्तर पर ठोस काम करे।
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