संदेश भारत, कांकेर । कांकेर जिले के बांसकुंड, ऊपर तोनका, नीचे तोनका और चलाचूर जैसे गांवों के लिए बारिश राहत नहीं, बल्कि मुसीबत बनकर आती है। जिला मुख्यालय से मात्र 45 किलोमीटर की दूरी पर बसे ये गांव हर साल बरसात के तीन महीनों में टापू बन जाते हैं। वजह है चिनार नदी, जिस पर आजादी के 78 साल बाद भी कोई पुल नहीं बना। नतीजा, 500 से ज्यादा ग्रामीणों का बाहरी दुनिया से संपर्क टूट जाता है।
खतरों से भरा स्टॉप डेम ही एकमात्र रास्ता
चिनार नदी पर बना स्टॉप डेम ही इन ग्रामीणों के लिए आने-जाने का इकलौता सहारा है। लेकिन यह रास्ता आसान नहीं। 16 पिलरों वाले इस डेम को कूदकर पार करना पड़ता है, जो जानलेवा जोखिम से भरा है। बच्चे स्कूल जाने के लिए, किसान खेतों तक पहुंचने के लिए, और राशन लाने के लिए इसी रास्ते पर निर्भर हैं। नदी के उफान पर होने पर हालात और बदतर हो जाते हैं, जब पार करना लगभग असंभव हो जाता है।
मरीजों का इलाज और बच्चों की पढ़ाई ठप
ग्रामीणों का कहना है कि बारिश में न शिक्षक स्कूल पहुंच पाते हैं, न ही मरीजों को समय पर अस्पताल ले जाया जा सकता है। आपात स्थिति में गांव में ही प्राथमिक उपचार करना पड़ता है, जो कई बार नाकाफी साबित होता है। बच्चों की पढ़ाई भी प्रभावित होती है, क्योंकि स्कूल पहुंचना खतरे से खाली नहीं।
पुल की मांग, शासन की अनदेखी
वर्षों से ग्रामीण चिनार नदी पर पुल की मांग कर रहे हैं, लेकिन उनकी सुनवाई नहीं हो रही। प्रशासन ने एक कच्ची सड़क जरूर बनाई, लेकिन वह भी अधूरी है और बारिश में बेकार। ग्रामीणों का धैर्य अब जवाब दे रहा है। वे सरकार से गुहार लगा रहे हैं कि चिनार नदी पर जल्द से जल्द पुल बनाया जाए, ताकि उनकी जिंदगी आसान हो और बारिश उनके लिए वरदान बने, न कि अभिशाप।
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