संदेश भारत, रायपुर।
महाराष्ट्र की राजनीति एक बार फिर करवट लेती नजर आ रही है। विधानसभा के मानसून सत्र के दौरान मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस और शिवसेना (यूबीटी) प्रमुख उद्धव ठाकरे के बीच दिखी हल्की-फुल्की हंसी-ठिठोली ने राजनीतिक गलियारों में हलचल मचा दी है। सवाल ये उठ रहा है कि क्या ये सिर्फ शिष्टाचार की मुस्कान थी, या फिर इसके पीछे कोई गंभीर राजनीतिक रणनीति पक रही है?
फडणवीस का ऑफर, ठाकरे की मुस्कान
विधान परिषद की कार्यवाही के दौरान मुख्यमंत्री फडणवीस ने नेता प्रतिपक्ष अंबादास दानवे के कार्यकाल का जिक्र करते हुए उद्धव ठाकरे को महायुति में शामिल होने का मजाकिया लेकिन सोचने लायक ऑफर दे दिया। उन्होंने कहा –
“उद्धव जी, 2029 तक विपक्ष में आने का स्कोप तो नहीं दिखता, लेकिन अगर आप यहां (सत्ता पक्ष में) आना चाहें, तो विचार किया जा सकता है… हां, अलग तरीके से।”
हालांकि यह टिप्पणी हल्के-फुल्के अंदाज में दी गई थी, लेकिन इसके राजनीतिक मायने गहरे माने जा रहे हैं। विश्लेषकों का मानना है कि यह बयान सिर्फ एक टिप्पणी नहीं, बल्कि एक संकेत हो सकता है—शिवसेना शिंदे गुट को दरकिनार कर ठाकरे गुट के साथ भविष्य में तालमेल की संभावना को लेकर।
लॉबी में मिली मुस्कान, सदन में दिखी सौहार्दता
विधानभवन की लॉबी में फडणवीस और उद्धव ठाकरे अचानक आमने-सामने आए और मुस्कुराकर एक-दूसरे का अभिवादन किया। दोनों नेताओं के बीच कुछ क्षणों की यह हंसी-ठिठोली भले ही छोटी लगी हो, लेकिन इसने राजनीतिक गलियारों में बड़ी चर्चाओं को जन्म दे दिया।
सदन के भीतर भी दोनों के बीच सौहार्द भरा माहौल दिखा। राजनीतिक तंजों के बीच बातचीत का लहजा सहज और विनम्र रहा।
पिता से ठिठोली, बेटे से भी गर्मजोशी
इतना ही नहीं, एक सार्वजनिक कार्यक्रम में फडणवीस और आदित्य ठाकरे के बीच भी हंसी-मजाक देखने को मिला। दोनों के बीच हुई हल्की-फुल्की बातचीत को लेकर भी सियासी संकेतों की तलाश शुरू हो गई है।
एक ही फ्रेम में शिंदे-ठाकरे, लेकिन बढ़ा हुआ फासला
अंबादास दानवे के विदाई समारोह के फोटो सेशन के दौरान उद्धव ठाकरे और एकनाथ शिंदे एक ही फ्रेम में नजर आए, लेकिन दोनों के बीच का फिजिकल और मानसिक फासला साफ दिखाई दिया। नीलम गोरे ने उद्धव ठाकरे को ठीक शिंदे के पास बैठने को कहा, लेकिन उन्होंने एक सीट छोड़कर बैठना बेहतर समझा। बगावत के बाद शायद पहली बार दोनों इतने पास आए, लेकिन कोई अभिवादन या बातचीत नहीं हुई।
क्या यह शिंदे गुट के लिए चेतावनी?
बीजेपी और शिंदे गुट की शिवसेना के बीच संबंधों में हाल के दिनों में खटास देखी गई है। ऐसे में फडणवीस की उद्धव ठाकरे को दी गई ‘लाइट टोन’ वाली यह पेशकश दरअसल शिंदे को दी गई एक चेतावनी भी मानी जा रही है—अगर संबंधों में सुधार नहीं हुआ, तो ठाकरे गुट एक विकल्प हो सकता है।
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