संदेश भारत, बिलासपुर। त्योहारों और सामाजिक आयोजनों में डीजे और साउंड सिस्टम से होने वाले शोर-शराबे पर हाईकोर्ट ने सख्ती दिखाई है। जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान राज्य शासन ने कोलाहल नियंत्रण अधिनियम लागू करने के लिए छह सप्ताह का समय मांगा, लेकिन मुख्य न्यायाधीश रमेश सिन्हा ने कहा कि अब और देरी नहीं चलेगी। कोर्ट ने शासन को केवल तीन सप्ताह का समय दिया और अगली सुनवाई की तारीख 9 सितंबर तय कर दी।
नागरिक समिति की याचिका
रायपुर की एक नागरिक समिति ने डीजे और साउंड सिस्टम से होने वाले ध्वनि प्रदूषण के खिलाफ हाईकोर्ट में याचिका लगाई थी। मीडिया में लगातार इस विषय पर खबरें आने के बाद कोर्ट ने भी स्वतः संज्ञान लेकर सुनवाई शुरू की।
जुर्माना बढ़ाने की मांग
याचिकाकर्ताओं का कहना है कि मौजूदा कानून में सख्ती नहीं है। सिर्फ 500 से 1000 रुपये का जुर्माना लगाकर मामले को निपटा दिया जाता है। न उपकरण जब्त होते हैं और न ही कड़े प्रावधान लागू किए जाते हैं। उन्होंने कहा कि जब तक कड़े नियम नहीं बनेंगे, शोर प्रदूषण पर काबू पाना मुश्किल है। प्रस्तावित संशोधन के बाद 5 लाख रुपये तक की पेनाल्टी लगाई जा सकती है।
लेज़र और बीम लाइट पर भी चिंता
सुनवाई के दौरान कोर्ट ने डीजे के साथ लेज़र और बीम लाइट से होने वाली दिक़्क़तों पर भी चिंता जताई। कोर्ट ने कहा कि डीजे का तेज शोर दिल के मरीजों के लिए खतरनाक है और लेज़र लाइट आम लोगों की आंखों को नुकसान पहुंचा सकती है। सरकार को इसे रोकने के लिए ठोस कदम उठाने के निर्देश दिए गए।
सरकार का पक्ष
शासन की ओर से बताया गया कि डीजे और वाहन-माउंटेड साउंड सिस्टम पर लेज़र लाइट का इस्तेमाल पहले से प्रतिबंधित है। उल्लंघन करने वालों पर जुर्माना लगाया जा रहा है और बार-बार नियम तोड़ने पर वाहन जब्त भी किए जाते हैं। पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम के तहत दोषियों को 5 साल की सजा, 1 लाख रुपये जुर्माना या दोनों का प्रावधान है।
डीजे संचालकों की दलील
डीजे संचालकों की ओर से भी हस्तक्षेप याचिका दायर की गई है। उनका कहना है कि कई बार पुलिस उनके खिलाफ एकतरफा कार्रवाई करती है, इसलिए नियम लागू होने से पहले स्पष्ट गाइडलाइन तय होनी चाहिए।
कोर्ट का आदेश
कोर्ट ने कहा कि शासन पहले ही कानून लागू करने का वादा कर चुका है, अब और बहाने नहीं चलेंगे। हाईकोर्ट ने तीन सप्ताह के भीतर मसौदा तैयार कर रिपोर्ट पेश करने के आदेश दिए हैं।
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