कांकेर में नक्सलियों का खूनी फरमान: ग्रामीण की हत्या, सरपंच समेत कई लोगों को दी खुली धमकी

कांकेर में नक्सलियों का खूनी फरमान: ग्रामीण की हत्या, सरपंच समेत कई लोगों को दी खुली धमकी

संदेश भारत, कांकेर। ‎छत्तीसगढ़ सरकार और पुलिस बार-बार दावा करती रही है कि नक्सलियों का सफाया अब बस कुछ ही कदम दूर है। लेकिन सच इसके ठीक उलट सामने आ रहा है। कांकेर जिले के परतापुर थाना क्षेत्र में नक्सलियों ने एक बार फिर अपनी मौजूदगी दर्ज कराते हुए खून की होली खेल दी।

‎गांव बिनागुंडा के युवक मनेश नूरुटी को जन अदालत लगाकर मौत के घाट उतार दिया गया। उस पर आरोप लगाया गया कि वह पुलिस को सूचना देता था। मौत की सजा सुनाने के बाद नक्सलियों ने श्रीपुर से इंद्रपुर जाने वाले रास्ते पर बैनर लगाकर न केवल हत्या की जिम्मेदारी ली, बल्कि कई और ग्रामीणों के नाम लिखकर उन्हें भी मौत की धमकी दे डाली।

बैनर में लिखा गया मौत का ऐलान

‎नक्सलियों ने लगाए बैनर में साफ लिखा है कि –

‎* पंचायत सरपंच रामजी धुर्वा

‎* आयतु

‎* टिब्बा कोरेटी

‎* धन्नी,

‎इनके साथ-साथ बैजू नरेटी और कई अन्य लोगों को पुलिस का मुखबिर बताया गया है। धमकी दी गई है कि अगर पुलिस की मदद की तो अगली बारी इन्हीं की होगी।

‎यानी एक साफ संदेश – “सरकार चाहे कुछ भी कहे, पुलिस चाहे कितने भी ऑपरेशन चलाए, जंगल में हुकूमत अब भी हमारी है।”

2024 की बड़ी मुठभेड़ की याद

‎यह इलाका वही है, जहां 16 अप्रैल 2024 को बिनागुंडा मुठभेड़ हुई थी। इस मुठभेड़ में पुलिस ने 29 नक्सलियों को ढेर किया था। इनमें खूंखार लीडर शंकर राव भी मारा गया था। उस समय सरकार ने इस ऑपरेशन को “बड़ा विजय अभियान” बताया था। दावा किया गया था कि नक्सली अब इस इलाके से पूरी तरह भाग चुके हैं।

‎लेकिन अब 4 महीने बाद तस्वीर उलट गई है। नक्सली फिर से लौट आए हैं। बैनर टांगकर साफ कर दिया है कि उनका खात्मा सिर्फ सरकार के कागजों में हुआ है, जमीन पर नहीं।

टीआई लक्ष्मण केंवट पर भी निशाना

‎नक्सलियों ने अपने बैनर में सिर्फ ग्रामीणों को ही नहीं, बल्कि पुलिस अधिकारियों पर भी आरोप लगाए हैं।

‎कहा गया है कि टीआई लक्ष्मण केंवट ने डीआरजी जवानों और गांव के सरपंच के साथ मिलकर “गोपनीय सैनिकों” की टीम बनाई है। इन ग्रामीणों को पुलिस मुखबिरी का जिम्मेदार बताया गया और चेतावनी दी गई कि जो भी गुप्त सैनिक बनेगा, उसका अंजाम मनेश नरेटी जैसा होगा।

सरकार के दावे बनाम हकीकत

‎कुछ ही दिन पहले पुलिस और सरकार ने बयान दिया था कि इस साल नक्सली “शहीदी सप्ताह” भी नहीं मना पाए। बैनर तक नहीं लगाने दे रहे। दावा किया गया कि यह नक्सलियों की कमजोरी का सबूत है।

‎लेकिन हकीकत देखिए – शहीदी सप्ताह के कुछ ही दिन बाद, नक्सलियों ने खून से अपनी मौजूदगी दर्ज कराई।

एक ग्रामीण को मार डाला।

‎बैनर लगाकर पूरे इलाके को दहशत में डाल दिया।‎सरपंच और कई ग्रामीणों का नाम लेकर सीधी धमकी दी।


गांव में फैली दहशत

‎बिनागुंडा और आसपास के गांवों में दहशत फैल गई है। ग्रामीण खुलेआम कुछ भी बोलने से कतरा रहे हैं। जो लोग पुलिस के साथ खड़े हैं, उनके लिए नक्सलियों ने मौत का एलान कर दिया है।

‎लोगों का कहना है – “एक तरफ पुलिस हमसे मुखबिरी चाहती है, जानकारी मांगती है। दूसरी तरफ नक्सली हमें जान से मारने की धमकी देते हैं। आखिर हम जाएं तो जाएं कहां?”

सरकार और पुलिस के लिए करारा झटका

‎यह घटना सरकार और पुलिस के उन दावों की पोल खोलती है, जिनमें कहा जा रहा था कि “अब नक्सलवाद खत्म होने की कगार पर है।”

‎सच यह है – नक्सली फिर से ताकत जुटा रहे हैं। ‎ग्रामीणों के बीच डर बैठा रहे हैं। और यह साफ कर रहे हैं कि जंगल में उनकी पैठ अभी भी बनी हुई है।

परिवार की चीख, गांव का सवाल

‎मनेश नरेटी के परिवार का रो-रोकर बुरा हाल है। एक निर्दोष बेटे को गांव के बीच से उठाकर मौत की सजा दे दी गई।

‎गांव के लोग सवाल पूछ रहे हैं – “क्या यही है आज़ादी? क्या यही है नक्सलियों के खात्मे का सपना? अगर पुलिस और सरकार हमें ही सुरक्षा नहीं दे पा रही, तो फिर यह जंग किसके लिए?”

कड़वी हकीकत

‎सच यही है – नक्सलवाद के खिलाफ लड़ाई सिर्फ बंदूक से नहीं जीती जा सकती।

‎जब तक ग्रामीणों का भरोसा सरकार पर नहीं होगा, जब तक गांव में विकास और रोज़गार नहीं पहुंचेगा, तब तक जंगल में नक्सली ऐसे ही अपनी अदालत लगाएंगे और बेगुनाहों को मौत की सजा सुनाते रहेंगे।

‎कांकेर की यह घटना सिर्फ एक हत्या नहीं है। यह सरकार और पुलिस को आईना दिखाती है।

‎एक तरफ दावा किया जा रहा है कि नक्सलियों का खात्मा हो रहा है।

‎दूसरी तरफ नक्सली खुलेआम बैनर लगाकर हत्या कर रहे हैं और पूरे गांव को धमकी दे रहे हैं।

‎यह सवाल सिर्फ सरकार के लिए नहीं, बल्कि पूरे समाज के लिए है – कब तक निर्दोष ग्रामीण नक्सलियों और पुलिस के बीच पिसते रहेंगे? कब तक इस खून की होली खेली जाती रहेगी?

‎ यह रिपोर्ट पढ़कर ही साफ हो जाता है कि नक्सलवाद सिर्फ “सुरक्षा बलों के ऑपरेशन” से खत्म नहीं होगा। इसके लिए ज़रूरी है कि सरकार ग्रामीणों को सच में सुरक्षा दे, उनके गांव में विकास और भरोसा ले आए। वरना हर कुछ महीने में ऐसे ही किसी निर्दोष की लाश गिरती रहेगी और नक्सली अपनी “जन अदालत” में खून के फैसले सुनाते रहेंगे।

Author Surendra Sahu
संपर्क करें

RAIPUR, CHHATISGARH

+91 9926144192

sandeshbharat.enquiry@gmail.com

सोशल मीडिया

© Sandesh Bharat. All Rights Reserved. Powered by Tivra Technologies