जर्जर पुल बना हादसे का न्योता: 20 साल बाद जमीनी हकीकत उजागर, करोड़ों की लागत पर सवाल!

जर्जर पुल बना हादसे का न्योता: 20 साल बाद जमीनी हकीकत उजागर, करोड़ों की लागत पर सवाल!

सन्देश भारत, सूरजपुर।छत्तीसगढ़ के सूरजपुर जिले में गोबरी नदी पर बना करोड़ों की लागत वाला पुल अब जानलेवा साबित हो रहा है। 2005 में तत्कालीन बीजेपी सरकार और मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह द्वारा जनता को सौंपा गया यह पुल आज अपने ही वजन से लड़खड़ा रहा है। मानसून के चलते लगातार हो रही बारिश ने इसकी असलियत सामने ला दी है—बाउंड्री वाल टूट चुकी है, दरारें उभर आई हैं, और ज़मीन में धंसाव साफ दिख रहा है। स्थानीय ग्रामीणों का कहना है कि पुल के हालात ऐसे हैं कि हर दिन डर के साए में चलना पड़ता है।
यह पुल ग्राम शिवप्रसाद नगर, डबरीपारा, भंवराही, बांसापारा सहित कई गांवों को सूरजपुर जिला मुख्यालय से जोड़ता है। यानी यह सिर्फ एक पुल नहीं, बल्कि हजारों ग्रामीणों की जीवनरेखा है। लेकिन बीजेपी की 15 साल लंबी सत्ता के बावजूद न इसकी मरम्मत हुई, न ही कोई स्थायी समाधान। अब जब यह पुल टूटने की कगार पर है, तो प्रशासन नींद में है और बीजेपी नेता खामोश।

विकास के दावे की पोल खोलता पुल

20 साल पहले जिस पुल का लोकार्पण बड़े-बड़े नारों और उद्घोषणाओं के साथ हुआ था, आज वह "विकास" की विफलता की सबसे बड़ी मिसाल बन गया है। यह वही विकास है, जिसका ज़िक्र बीजेपी चुनावी मंचों से लेकर हर रिपोर्ट कार्ड में करती रही है।

लेकिन जमीनी सच्चाई यही है कि बारिश ने इस विकास की हकीकत उधेड़ कर रख दी है।

ग्रामीणों का दर्द: बच्चों की पढ़ाई, खेती और ज़िंदगी दांव पर

ग्रामीण बताते हैं कि बरसात के मौसम में यह पुल ही उनकी एकमात्र उम्मीद है। बच्चे स्कूल इसी रास्ते से जाते हैं, खेतों तक पहुंचने और बीमारों को अस्पताल ले जाने का रास्ता भी यही है। लेकिन अब यह रास्ता मौत के साये में बदल चुका है।
"हम मजबूरी में इस जर्जर पुल से गुजर रहे हैं। कब कौन हादसे का शिकार हो जाए, कहा नहीं जा सकता।"
—एक ग्रामीण की मार्मिक अपील

प्रशासन और बीजेपी की चुप्पी शर्मनाक

ग्रामीणों ने कई बार प्रशासन से गुहार लगाई, लेकिन अब तक कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया। बीजेपी सरकार ने जिस पुल का उद्घाटन किया, उसकी देखरेख तक नहीं कर सकी। अब सवाल यह उठता है कि क्या सिर्फ उद्घाटन करना ही विकास है? रखरखाव और सुरक्षा की जिम्मेदारी कौन उठाएगा?
जनता का सवाल: करोड़ों कहां गए?
पुल निर्माण में करोड़ों रुपये खर्च हुए, लेकिन दो दशक भी नहीं टिक सका। यह सवाल अब आमजन के मन में है कि क्या गुणवत्ता से समझौता किया गया था? या फिर निर्माण में भ्रष्टाचार हुआ?
मांग: तत्काल मरम्मत और वैकल्पिक रास्ते की व्यवस्था हो
ग्रामीणों ने प्रशासन से मांग की है कि पुल की तत्काल मरम्मत कराई जाए या कोई वैकल्पिक व्यवस्था दी जाए, ताकि किसी बड़ी दुर्घटना से पहले हालात सुधारे जा सकें।
अब वक्त है कि जिम्मेदारों से जवाब मांगा जाए। छत्तीसगढ़ की जनता जानना चाहती है कि आखिर 15 साल बीजेपी की सरकार ने इस पुल के लिए क्या किया? विकास का नारा देने वाले अब इस खतरनाक जर्जर पुल की जिम्मेदारी कब लेंगे?
यह सिर्फ एक पुल नहीं, सवाल है सिस्टम की जवाबदेही का।

Author Surendra Sahu
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